*साहब रिटायर होता है!*
*साहब रिटायर होता है !* सरकारी बँगला, उसका हरा भरा लॉन, ड्राइवरों, चपरासियो के साथ बिना मांगे नमस्ते करने वालो ऑफिस के चमचों की भीड एकाएक साथ छोड जाती है ! हाँलाकि उनके जाने का दिन तो हमेशा से तय था पर साहब को ये एकाएक सा ही लगता है ! साहब हतप्रभ होता है, फिर भी टिमटिमाता है उम्मीद का दिया ! चूँकि वो हमेशा से यह माने बैठा था कि वह बेहद ज्ञानी है ! वो मानता था दफ़्तर चलना मुश्किल होगा उसके बिना ! लोग आयेंगे सलाह मशविरे के लिये ! मार्गदर्शन देने के लिये बैचैन साहब उम्मीद भरी आँखों से ताकता है रास्ते को l पर अफ़सोस ! कोई नही फटकता ! दुखियारी शाम के बाद फिर से वही उदास सुबह चली आती है ! दिन बीतने लगते है ! हफ़्ते बीत ज़ाते है ! और फिर बीतते महिनो के साथ आस बीतने लगती है ! निराशा के भँवर मे गोते खाता साहब किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है ! बेचैन होता है ! सुबह पढ़ चुके अख़बार को दुबारा तिबारा पढ़ता है ! आस्था और संस्कार, दिव्या, चैनल के साथ डीडी चैनल भी देखता है ! चुप्पी साधे पडे मोबाईल फ़ोन को निहारता साहब घरवाली, या सिधे कहें उनकी भी बॉस, से फ़ोन ख़राब होने की शंका जाहिर करता