Posts

*साहब रिटायर होता है!*

*साहब रिटायर होता है !* सरकारी बँगला, उसका हरा भरा लॉन, ड्राइवरों, चपरासियो के साथ बिना मांगे नमस्ते करने वालो ऑफिस के चमचों की भीड एकाएक साथ छोड जाती है ! हाँलाकि उनके जाने का दिन तो हमेशा से तय था पर साहब को ये एकाएक सा ही लगता है ! साहब हतप्रभ होता है, फिर भी  टिमटिमाता है उम्मीद का दिया ! चूँकि वो हमेशा से यह माने बैठा था कि वह बेहद ज्ञानी है ! वो  मानता था दफ़्तर चलना मुश्किल होगा उसके बिना ! लोग आयेंगे सलाह मशविरे के लिये ! मार्गदर्शन देने के लिये बैचैन साहब उम्मीद भरी आँखों से ताकता है रास्ते को l पर अफ़सोस ! कोई नही फटकता ! दुखियारी शाम के बाद फिर से वही उदास सुबह चली आती है !  दिन बीतने लगते है ! हफ़्ते बीत ज़ाते  है ! और फिर बीतते महिनो के साथ आस बीतने लगती है ! निराशा के भँवर मे गोते खाता साहब किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है ! बेचैन होता है ! सुबह पढ़ चुके अख़बार को दुबारा तिबारा पढ़ता है ! आस्था और संस्कार, दिव्या, चैनल के साथ डीडी चैनल भी देखता है ! चुप्पी साधे पडे मोबाईल फ़ोन को निहारता साहब घरवाली, या सिधे कहें उनकी भी बॉस, से फ़ोन ख़राब होने की शंका जाहिर करता

आखिर अंतर रह ही गया

*आखिर अंतर रह ही गया*       🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 बचपन में जब हम रेल की सवारी  करते थे, माँ घर से खाना बनाकर ले जाती थी l पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा ने समझाया ये हमारे  बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह  पैसे खर्च कर सकते हैं,  हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैंl "स्वास्थ  सचेतन के लिए"। *आखिर वो अंतर रह ही गया* l बचपन मेंं जब हम सूती कपड़ा पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे l बड़ा  मन करता था पर  पापा कहते हम इतना खर्च  नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरीलीन पहने लगे तब वो लोग सूती  के कपड़े पहनने  लगे l सूती  कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च  नहीँ कर सकते l 🌲🌲*आखिर अंतर रह ही गया* बचपन मेंं जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनों के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महंगे दामों  मेंं बड़े दुकानों  से खरीदकर पहन र

एक नजर इधर भी .....!!

फेसबुक, व्हाट्स-ऐप की पोस्ट देखकर और युवाओं से बात करके मुझे ऐसा लगता है कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी के मन में राजनीति चकाचौंध की तरफ एक विशेष तरह का आकर्षण है एक झुकाव है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है मैं समझता हूँ इसमें कोई गलत बात भी नहीं है आखिर वर्तमान में ही तो भविष्य का बीज है जबकि हमारा आज बीते हुवे कल का फल | जो लोग राजनीति में कदम बढ़ा रहे हैं बढ़ा चुके हैं या बढानें के विषय में सोंच रहे हैं उन्हें यह समझना होगा कि हमारा वर्तमान समाज ऐसा हो गया हैं जैसे सुख, सुविधा, वैभव आदि के दिखावे में लोग दिन प्रति दिन और अधिक अंधे होते जा रहे है जबकि हम और हमारा भारत हमेसा से ऐसे नहीं थे, समय के साथ धीरे धीरे विभिन्न कारणों से हमनें अपनीं और अपनें समाज की ऐसी हालत बना ली तो अब जबकि हम सभी यह महसूस कर सक्ते हैं कि बेहतर जिंदगी की तलाश में जैसे जिंदगी को ही पीछे छोड़ कर आज कोई सुखी नहीं दिखता, कम से कम अब हमें न सिर्फ उन कारणों को दोहरानें से बचना होगा जिनसे वर्तमान (समाज रुपी फल) का परिणाम आया बल्कि हमें अब खुद ही सामाजिक प्राणी होनें के नाते सजग रहकर स्वस्थ समाज के निर्माण में सक्रिय रह करअपन

एक व्यापारी

एक व्यापारी अकबर के समय मे बिजनेस करता था। महाराणा प्रताप से लडाई  की वजह से अकबर कंगाल हो गया और व्यापारी  से कुछ सहायता मांगी। व्यापारी ने अपना सब धन अकबर को दे दिया। तब अकबर ने उससे पुछा कि तुमने इतना धन कैसे कमाया, सच सच बताओ नहीं तो फांसी दे दुंगा। व्यापारी बोला-जहांपनाह मैंने यह सारा धन कर चोरी और मिलावट से कमाया है। यह सुनकर अकबर ने बीरबल से सलाह करके व्यापारी  को घोडो के अस्तबल मे लीद साफ करने की सजा सुनाई। व्यापारी वहां काम करने लगा। दो साल बाद फिर अकबर लडाई मे कं गाल हो गया तो बीरबल से पूछा अब धन की व्यवस्था कौन करेगा? बीरबल ने कहा बादशाह उस व्यापारी से बात करने से समस्या का समाधान हो सकता है। तब अकबर ने फिर व्यापारी  को बुलाकर अपनी परेशानी बताई तो  व्यापारी  ने फिर बहुत सारा धन अकबर को दे दिया। अकबर ने पुछा तुम तो अस्तबल  मे काम करते हो फिर तुम्हारे पास इतना धन कहां से आया सच सच बताओ नहीं तो सजा मिलेगी।  व्यापारी   ने कहा यह धन मैने आप के आदमी जो घोडों की देखभाल करते है उन से यह कहकर रिश्वत लिया है कि घोडे आजकल लीद कम कर रहे है। मैं इसकी शिकायत बादशाह को करुगां

सीरवी समाज और सामाजिक समस्या

समाज वह व्यवस्था है जिसमे रहने वाले लोग परस्पर संबंधों क़े आधार पर एक -दूसरे पर अन्योन्याश्रित  रहते हैं .समाज में शांति व व्यवस्था बनाए रखने क़े लिए ,उस समाज द्वारा कुछ नियम व मर्यादाएं निरूपित की जाती हैं जिनका पालन उसमे रहने वाले लोग स्वेच्छा से करते हैं और सुखी जीवन व्यतीत करते हैं .लेकिन आज यों तो अशांति एक विश्व -व्यापी समस्या बन चुकी है परन्तु भारतीय समाज क़े सन्दर्भ में यह विकराल रूप धारण किये हुए खडी है. क्या बच्चे ,क्या बूढ़े और क्या नौजवान सभी किसी न किसी समस्या से ग्रस्त अशांत जीवन जीने को बाध्य है निखरती है मुसीबतों से ही! शख्सियत यारों !! जो चट्टान से ही ना उलझे! वो झरना किस काम का!! प्रातः काल आँख खुलने से रात्रि में सोते समय तक प्रायः हर मनुष्य किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होकर अशांत हैं,बल्कि इसी अशांति क़े चलते कईयों की तो रात की नींद और दिन का चैन तक उड़ चुका है .छोटे -छोटे संस्कारों पर भी भव्य प्रीती -भोज तो आयोजित किये जा रहे हैं परन्तु लोगों में प्रीत -भाव का सर्वथा अभाव हैएक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ और अपने अहं की तुष्टि में ही गौर्न्वावित होना आज का सा

नव दम्‍पत्तियों के चूर चूर होते सपने.........

नव दम्‍पत्तियों के चूर चूर होते सपने....... 16 संस्‍कारों के कल्‍पतरू से विवाह संस्‍कार की उडान भरने वाले नव दम्‍पत्तियों के भावी जीवन को सुखी देखने एवं विवाह कार्य निर्विध्‍न रूप से सम्‍पन्‍न हो इसके लिए माता पिता, सगे संबंधी, गणनायक गजानन को रिध्‍दी सिध्‍दी सहित आने का प्रथम निमन्‍त्रण पत्रिका के माध्‍यम से देते हैं।    जीवन साथी के चयन में युवा युवति की आपसी की पसन्‍द और रजामन्‍दी का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद, परिवार जनों व्‍दारा वैवाहिक संबंध तय करने की प्रकिया सम्‍पन्‍न कर दी जाती है। दूल्‍हे का दुल्‍हन के घर जाना, सप्‍तपदी, सात वचन को निभाना, फिर पाणिग्रहण के व्‍दारा विवाह के पवित्र बंधन में बंध जाना और दुल्‍हन को लेकर वापस घर लौट आना। यह सामाजिक परम्‍परा की एक पवित्र धरोहर है। ममता, मौज, मस्‍ती, लगाव, अमूल्‍य समय, अर्थ की सार्थकता, परिवार और स्‍नेहीजनों के आशीर्वाद जैसे कई अनमोल रत्‍न जडे जाते है, तब जाकर विवाह की सारी विधि सम्‍पन्‍न होती है, जबकि लव मेरिज, कोर्टमेरिज जैसे संबंधों में केवल दो के बीच कोई तीसरे की भूमिका भी नहीं होती है ।    सहयोग और समन्‍वय के बीच होने वाले विव

मुझे आपत्ति है....

हमारे सीरवी समाज  में महिलाओं के साथ जिस तरह का व्यवहार (बार-बार तलाक, अदला बदली कांसेप्ट) होता है, मुझे उस पर आपत्ति है और मैं इस बारे में ठोस राय रखता हूँ।  लेकिन मैं अपनी  राय प्रकट कर देता हूँ, तो उल्टा मुझे समझाते हैं,  ' चुप रहो, । इस बारे में राय देने वाले तुम कौन होते हो।" दरअसल उनके साथ भेदभाव करने का रवैया, समाज में कूट-कूटकर भरा है। अभी तो अपने समाज में अधिकतर महिलाओं को यह आभास भी नहीं है की वे शोषण का शिकार हो रही हैं और स्वयं एक अन्य महिला का शोषण करने में समाज को सहयोग कर   रही है. आज यह पूरे सीरवी समाज का दायित्व है कि वह नारी को बराबरी का स्थान दें। अब इसको कोई नारी मुक्ति का नाम दे या नारी शक्तिकरण का, उससे कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। नारी और पुरुष एक दूसरे के शत्रु नहीं हैं बल्कि पूरक हैं। कहा भी गया है शिव शक्ति के बिना शव के समान हैं। राधा के बिना कृष्ण आधा हैं। नारियों की समस्या केवल उनकी समस्या नहीं है। यह पूरे समाज की समस्या है। या यूं कहिए सामाजिक समस्या का एक अंग है। साफ है कि नारी की स्थिति में बदलाव लाने के लिए पूरे सामाजिक ढांचे एवं सोच में बदलाव